पश्चिम तराइको एक प्रमुख पर्वको रुपमा मनाइने प्राकृतिक पुजक पर्व अर्थात् #तीन_छठि पर्व आफ्नो संतान को खुशहाली को कामना को लागि भाद्र कृष्ण पक्षको षष्ठी तिथिको दिन मेउडिहवकि आमाहरुले #हलषष्ठी अर्थात् तीन छठीको व्रत राखेर पर्व मनाइ रहनु भएको छ । वार्तालु महिलाहरु विहानै देखि वार्ताको तयारीमा जुटेकी छिन्। यस वर्तामा मुख्य तय रुपले महुवाको फलफूल र पत्त्त हरुको साथै विभिन्न पुजा सामग्रीको प्रयोग गरि कुसको पुजा गरि यो पर्व मनाउने गरिन्छ।
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भाद्र मास के कृष्ण पक्ष षष्ठी को हरछठ व्रत मनाया जाता है । इस व्रत को हलषष्ठी (Hal Shashti), हलछठ (hal chhath), हरछठ व्रत (Har chhath), चंदन छठ (chandan chhath), तिनछठी (Tin chhathi, तिन्नी छठ (Tinni chhath), ललही छठ (Lalhi chhath), कमर छठ (Kamar chhath), या खमर छठ (Khamar chhath) भी कहा जाता है। यह व्रत स्त्रियाँ अपने संतान की दीर्घ आयु के लिये करती है। इस दिन हलषष्ठी माता की पूजा की जाती है।
भाद्र मास के कृष्ण पक्ष षष्ठी को भगवान कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। यह व्रत बलराम जी के जन्म के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल है इसलिये इस व्रत को हलषष्ठी कहते हैं। इस व्रत में हल से जुते हुए अनाज व सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है। इसलिए महिलाएं इस दिन तालाब में उगे पसही/तिन्नी का चावल/पचहर के चावल खाकर व्रत रखती हैं। इस व्रत में गाय का दूध व दही इस्तेमाल में नहीं लाया जाता है इस दिन महिलाएं भैंस का दूध ,घी व दही इस्तेमाल करती है|
भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी या हर छठ व्रत और पूजन किया जाता है। यह व्रत वही स्त्रियाँ करती हैं जिनको पुत्र होता है। जिनको केवल पुत्री होती है, वह यह व्रत नहीं करती। यह व्रत पुत्र के दीर्घायु के लिये किया जाता है। इस व्रत में हल के द्वारा जोता-बोया अन्न या कोई फल नहीं खाया जाता। क्योंकि इस तिथि को ही हलधर बलराम जी का जन्म हुआ था और बलराम जी का शस्त्र हल है। इस व्रत में गाय का दूध, दही या घी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस व्रत में केवल भैंस के दूध, दही का उपयोग किया जाता है। इस व्रत में महुआ के दातुन से दाँत साफ किया जाता है। शाम के समय पूजा के लिये मालिन हरछ्ट बनाकर लाती है। हरछठ में झरबेरी, कास (कुश) और पलास तीनों की एक-एक डालियाँ एक साथ बँधी होती है। जमीन को लीपकर वहाँ पर चौक बनाया जाता है। उसके बाद हरछ्ठ को वहीं पर लगा देते हैं । सबसे पहले कच्चे जनेउ का सूत हरछठ को पहनाते हैं।
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भाद्र मास के कृष्ण पक्ष षष्ठी को हरछठ व्रत मनाया जाता है । इस व्रत को हलषष्ठी (Hal Shashti), हलछठ (hal chhath), हरछठ व्रत (Har chhath), चंदन छठ (chandan chhath), तिनछठी (Tin chhathi, तिन्नी छठ (Tinni chhath), ललही छठ (Lalhi chhath), कमर छठ (Kamar chhath), या खमर छठ (Khamar chhath) भी कहा जाता है। यह व्रत स्त्रियाँ अपने संतान की दीर्घ आयु के लिये करती है। इस दिन हलषष्ठी माता की पूजा की जाती है।
भाद्र मास के कृष्ण पक्ष षष्ठी को भगवान कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। यह व्रत बलराम जी के जन्म के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल है इसलिये इस व्रत को हलषष्ठी कहते हैं। इस व्रत में हल से जुते हुए अनाज व सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है। इसलिए महिलाएं इस दिन तालाब में उगे पसही/तिन्नी का चावल/पचहर के चावल खाकर व्रत रखती हैं। इस व्रत में गाय का दूध व दही इस्तेमाल में नहीं लाया जाता है इस दिन महिलाएं भैंस का दूध ,घी व दही इस्तेमाल करती है|
भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी या हर छठ व्रत और पूजन किया जाता है। यह व्रत वही स्त्रियाँ करती हैं जिनको पुत्र होता है। जिनको केवल पुत्री होती है, वह यह व्रत नहीं करती। यह व्रत पुत्र के दीर्घायु के लिये किया जाता है। इस व्रत में हल के द्वारा जोता-बोया अन्न या कोई फल नहीं खाया जाता। क्योंकि इस तिथि को ही हलधर बलराम जी का जन्म हुआ था और बलराम जी का शस्त्र हल है। इस व्रत में गाय का दूध, दही या घी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस व्रत में केवल भैंस के दूध, दही का उपयोग किया जाता है। इस व्रत में महुआ के दातुन से दाँत साफ किया जाता है। शाम के समय पूजा के लिये मालिन हरछ्ट बनाकर लाती है। हरछठ में झरबेरी, कास (कुश) और पलास तीनों की एक-एक डालियाँ एक साथ बँधी होती है। जमीन को लीपकर वहाँ पर चौक बनाया जाता है। उसके बाद हरछ्ठ को वहीं पर लगा देते हैं । सबसे पहले कच्चे जनेउ का सूत हरछठ को पहनाते हैं।